प्रभु तुम बरस रहे हो…
हर पल हर क्षण…
पर जाने क्यों मेरा ह्रदय आँगन सुखा ही रह जाता हैं..,
आस-पास जहाँ भी ह्रदय से देखता हूँ…
प्रभु तुम ही नज़र आते हो…
पर जाने क्यों इन आँखों में तुन्हारी छवि धूमिल होती जाती हैं…
जब भी तुम्हारे प्रेम के लिए हाथ फहलाता हूँ…
मेरी साँसे तुम से महक पड़ती हैं…
पर हथेली से रेत की तरह तुम छुटते जाते हो….
प्रभु जानता हूँ, मुझमे ही कमी हैं…
पर जाने क्यों प्र्यतन कर के भी सुधार नहीं पाता…
– प्रेम
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